अख़ीर वक़्त है किस मुँह से जाऊँ मस्जिद को
तमाम उम्र तो गुज़री शराब-ख़ाने में
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हमें याद रखना हमें याद करना
बुत-कदा नज़दीक काबा दूर था
गो ये रखती नहीं इंसान की हालत अच्छी
नाज़नीं जिन के कुछ नियाज़ नहीं
कहा ये किस ने कि वादे का ए'तिबार न था
शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस
अदा परियों की सूरत हूर की आँखें ग़ज़ालों की
अजब ज़माने की गर्दिशें हैं ख़ुदा ही बस याद आ रहा है
दीवाने हुए सहरा में फिरे ये हाल तुम्हारे ग़म ने किया
उस को आज़ादी न मिलने का हमें मक़्दूर है
क़ैद में इतना ज़माना हो गया
ख़ुद-बख़ुद आँख बदल कर ये सवाल अच्छा है