चक-फेरी
बारहवाँ खिलाड़ी
मैं चुप रहा कि वज़ाहत से बात बढ़ जाती
ये वक़्त किस की रऊनत पे ख़ाक डाल गया
हिज्र की धूप में छाँव जैसी बातें करते हैं
एक ख़्वाब की दूरी पर
वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे
ये क़र्ज़-ए-कज-कुलही कब तलक अदा होगा
समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है
पस च-बायद-कर्द
हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद में
ये मो'जिज़ा भी किसी की दुआ का लगता है