इक ख़्वाब ही तो था जो फ़रामोश हो गया
इक याद ही तो थी जो भुला दी गई तो क्या
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वही प्यास है वही दश्त है वही घराना है
दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़
एलान नामा
वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे
कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए
एक हम ही तो नहीं हैं जो उठाते हैं सवाल
अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया
ख़ल्क़ ने इक मंज़र नहीं देखा बहुत दिनों से
बारहवाँ खिलाड़ी
दर-ओ-दीवार इतने अजनबी क्यूँ लग रहे हैं
तमाम ख़ाना-ब-दोशों में मुश्तरक है ये बात
शगुफ़्ता लफ़्ज़ लिक्खे जा रहे हैं