कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए
बस एक रिज़्क़ का मंज़र नज़र में रक्खा जाए
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(942) Peoples Rate This
मैं अपने ख़्वाब से कट कर जियूँ तो मेरा ख़ुदा
ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ
अजीब ही था मिरे दौर-ए-गुमरही का रफ़ीक़
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
मैं जिस को एक उम्र सँभाले फिरा किया
रौशन दिल वालों के नाम
ज़रा सी देर को आए थे ख़्वाब आँखों में
सुख़न-ए-हक़ को फ़ज़ीलत नहीं मिलने वाली
ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था
शगुफ़्ता लफ़्ज़ लिक्खे जा रहे हैं