दे एक शब को अपनी मुझे ज़र्द शाल तू
क्या मिला हम को तेरी यारी में
उस बंदा की चाह देखिएगा
हज़रत-ए-इश्क़ इधर कीजे करम या माबूद
ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है
देखना जब मुझे कर शान ये गाली देना
काश अब्र करे चादर-ए-महताब की चोरी
अमरद हुए हैं तेरे ख़रीदार चार पाँच
दीवार फाँदने में देखोगे काम मेरा
सुब्ह-दम मुझ से लिपट कर वो नशे में बोले
जज़्बा-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा-अल्लाह
शैख़-जी ये बयान करो हम भी तो बारी कुछ सुनें