साँवले तन पे ग़ज़ब धज है बसंती शाल की
जी में है कह बैठिए अब जय कनहय्या लाल की
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(899) Peoples Rate This
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
चाहता हूँ तुझे नबी की क़सम
है ख़ाल यूँ तुम्हारे चाह-ए-ज़क़न के अंदर
गाहे गाहे जो इधर आप करम करते हैं
क्या भला शैख़-जी थे दैर में थोड़े पत्थर
शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने
दीवार फाँदने में देखोगे काम मेरा
क्या हँसी आती है मुझ को हज़रत-ए-इंसान पर
जब तक कि ख़ूब वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहाँ न हूँ
याँ ज़ख़्मी-ए-निगाह के जीने पे हर्फ़ है
गर्मी ने कुछ आग और भी सीने में लगाई
लग जा तू मिरे सीना से दरवाज़ा को कर बंद