मोहब्बतों को भी उस ने ख़ता क़रार दिया
मगर ये जुर्म हमें बार बार करना है
Wasi Shah
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(785) Peoples Rate This
बे-कसी पर ज़ुल्म ला-महदूद है
मौज-ए-बला में रोज़ कोई डूबता रहे
अटे हुए हैं फ़क़ीरों के पैरहन 'कैफ़ी'
कैफ़-ए-हयात तेरे सिवा कुछ नहीं रहा
लब-ए-गुदाज़ पे अल्फ़ाज़-ए-सख़्त रहते हैं
देखा है मोहब्बत को इबादत की नज़र से
सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है
ग़ज़ल के रंग में मल्बूस हो कर
साहिल के तलबगार भी क्या ख़ूब रहे हैं
फूलों का तबस्सुम भी वो पहला सा नहीं है
मैं ऐसे हुस्न-ए-ज़न को ख़ुदा मानता नहीं