हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले
इधर कुछ दिन से दिल की बेकली कम हो गई है
अजब है रंग-ए-चमन जा-ब-जा उदासी है
चुप है आग़ाज़ में, फिर शोर-ए-अजल पड़ता है
अपनी ख़बर, न उस का पता है, ये इश्क़ है
आज बाम-ए-हर्फ़ पर इम्कान भर मैं भी तो हूँ
हर एक शक्ल में सूरत नई मलाल की है
जो बे-रुख़ी का रंग बहुत तेज़ मुझ में है
ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया
कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा
अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी
इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा