मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
जल्वे का नहीं फिर भी कोई इम्कान
गोया ऐ 'जोश' मैं हूँ ऐसा मज़दूर
जो भूक में हो सर पे उठाए हुए ख़्वान
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नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
मुबहम पयाम
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम