वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
मय ज़ोहरा बनी तो रूह मस्ती-ए-नाहीद
अरमान बड़े गले में ढोलक डाले
थिरकी कूल्हे पे हात रख कर उम्मीद
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आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत