बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
सहबा-ए-कुहन-साल का चखने वाला
क्या अपने मआनी का मैं रोना रोऊँ
अल्फ़ाज़ नहीं कोई परखने वाला
Faiz Ahmad Faiz
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Javed Akhtar
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दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
मुबहम पयाम
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
ज़ब्त-ए-गिर्या
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
जाने वाले क़मर को रोके कोई