जाने वाले क़मर को रोके कोई
सब्त के पैक-ए-सफ़र को रोके कोई
थक कर मिरे ज़ानू पे वो सोया है अभी
रोके रोके सहर को रोके कोई
Rahat Indori
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ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के