इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
काकुल में बदल जाएगी कुल ये ज़ंजीर
इस आदम-ए-फ़र्सूदा के ज़ेर-ए-तख़रीब
इक आदम-ए-नौ की हो रही है तामीर
Wasi Shah
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
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इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
बरसात है दिल डस रहा है पानी
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप