पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
ख़ूँ क़ौम-ए-तही-दस्त का पीने वालो
तुम अहल-ए-ख़िरद से क्यूँ न रक्खोगे इनाद
ख़ैरात पर अहमक़ों की जीने वालो
Gulzar
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ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
मुबहम पयाम
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब