बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
या दौलत या पंदा-ए-ज़ुल्फ़-ओ-रुख़्सार
माबूद नहीं नहीं कोई चीज़ नहीं
इल्ला आगाही-ए-रुमूज़-ओ-असरार
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ज़ब्त-ए-गिर्या
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार