गिरा न आँख से आँसू फ़रेब-ए-क़िस्मत पर
सुकून जिस से हो वो इज़्तिराब पैदा कर
मिज़ा में रोक ले आँसू कि दिल हो आईना
सितारे तोड़ दे और आफ़्ताब पैदा कर
Parveen Shakir
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Gulzar
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ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
जाने वाले क़मर को रोके कोई
ज़ब्त-ए-गिर्या
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी