औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ख़ुद को भी सुनाता नहीं बातें अपनी
हर साअत ख़ुश है हाल-ए-मसरूक़ा-ए-वक़्त
क़ुदरत से छुपा रहा हूँ रातें अपनी
Mir Taqi Mir
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मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
ज़ब्त-ए-गिर्या
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
बरसात है दिल डस रहा है पानी