मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
फ़िरदौस को रेहन-ए-ताक़-ए-निस्याँ कर दे
साक़ी है मुग़न्नी है चमन है मय है
इस नक़्द पे सौ उधार क़ुर्बान कर दे
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आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
ज़ब्त-ए-गिर्या
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप