लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
बल खाएँगे मुज्तहिद बिगड़ जाएँगे पोप
ये कहती चली आती हैं लाखों अक़्लें
पहने हुए आबा के पुराने कनटोप
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
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क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
बरसात है दिल डस रहा है पानी
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है