दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
उस्लूब-ए-सुख़न नया निकाला हम ने
ज़र्रात को छोड़ कर हरीफ़ों के लिए
ख़ुर्शीद पे बढ़ के हाथ डाला हम ने
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औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं