ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
सिर्फ़ एक तबस्सुम के लिए खिलता है
ग़ुंचे ने कहा कि इस चमन में बाबा
ये एक तबस्सुम भी किसे मिलता है
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मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
जाने वाले क़मर को रोके कोई
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह