तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
चाँदनी किस लिए तरसती है
जाम अब क्यूँ खनकते रहते हैं
ये घटा किस लिए बरसती है
Wasi Shah
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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तुम घटाओं का एहतिमाम करो
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
आरज़ू के दिए जलाने से
मिरी गली में ये आहट थी किस के क़दमों की
काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
दर्द का जाम ले के जीते हैं
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी