आरज़ू के दिए जलाने से
ये अँधेरे तो कम नहीं होंगे
कब ज़माने में ग़म नहीं थे दोस्त
कम ज़माने में ग़म नहीं होंगे
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
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सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
तुम घटाओं का एहतिमाम करो
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
दर्द का जाम ले के जीते हैं