काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
एक दर्द-ए-मुदाम बाक़ी है
सज्दे करता हूँ उठ के पिछले पहर
इश्क़ का एहतिराम बाक़ी है
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
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Javed Akhtar
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Habib Jalib
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हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
तुम घटाओं का एहतिमाम करो
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
आरज़ू के दिए जलाने से
दिल-जलों को सताने आए हैं
आ कि बज़्म-ए-तरब सजा लें हम
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
ऐ ग़म-ए-दोस्त, हम ने तेरे लिए
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं