दिल-जलों को सताने आए हैं
ग़म-ज़दों को रुलाने आए हैं
उफ़! ये बे-दर्द शाम के साए
हसरतों को जगाने आए हैं
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
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आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
गुलों का, नग़्मों का, ख़्वाबों का चाँदनी का सलाम
न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
बड़ी शफ़ीक़, बड़ी ग़म-शनास लगती हैं
दर्द का जाम ले के जीते हैं
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
आरज़ू के दिए जलाने से
तुम गुनाहों से डर के जीते हो
तुम घटाओं का एहतिमाम करो
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी