न तेरे दर्द के तारे ही अब सुलगते हैं
न तेरी याद की अब चाँदनी बरसती है
ये कैसा वक़्त, मोहब्बत में तेरी आया है
मिरी हयात, तिरे ग़म को भी तरसती है
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सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
आरज़ू के दिए जलाने से
दिल-जलों को सताने आए हैं
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
आसमाँ की बुलंदियों से नदीम
मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
दर्द का जाम ले के जीते हैं
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
तुम घटाओं का एहतिमाम करो