तुम घटाओं का एहतिमाम करो
इज़्न-ए-जाम-ए-शराब हम देंगे
तुम गुनाहों का लुत्फ़ तो ले लो
हश्र के दिन हिसाब हम देंगे
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
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मिरी जवानी बहारों में भी उदास रही
तू मिरे साथ अब नहीं है दोस्त
हम फ़क़ीरों की बात क्यूँ पूछो
दर्द का जाम ले के जीते हैं
काविश-ए-सुब्ह-ओ-शाम बाक़ी है
आरज़ू के दिए जलाने से
ज़िंदगी की हसीन शहज़ादी
तुम गुनाहों से डर के जीते हो
तुम्हारी याद के उजड़े हुए, उदास चमन
इतनी तल्ख़ फ़ज़ा में भी हम ज़िंदा हैं
सख़्त-जाँ भी हैं और नाज़ुक भी
दिल-जलों को सताने आए हैं