दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन
हो आशिक़ों में उस के तो आओ 'मीर'-साहिब
बुत-ख़ाने से दिल अपने उठाए न गए
बुताँ के इश्क़ ने बे-इख़्तियार कर डाला
दिल टुक उधर न आया ईधर से कुछ न पाया
हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर
गह सरगुज़िश्त उन ने फ़रहाद की निकाली
तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
फूलों की सेज पर से जो बे-दिमाग़ उठ्ठे
मय-कशी सुब्ह-ओ-शाम करता हूँ