Ghazals of Mirza Ghalib (page 5)
नाम | ग़ालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए
कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
काबे में जा रहा तो न दो ताना क्या कहें
कब वो सुनता है कहानी मेरी
जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार
जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
जो न नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल की करे शोला पासबानी
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है
जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे
जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या
जराहत तोहफ़ा अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं
जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ'
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
इश्क़ तासीर से नौमीद नहीं
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
हुज़ूर-ए-शाह में अहल-ए-सुख़न की आज़माइश है
हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है
हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है
हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द
हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते
हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं