Ghazals of Mirza Ghalib (page 2)
नाम | ग़ालिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
सीमाब-पुश्त गर्मी-ए-आईना दे है हम
शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया
शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है
शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला
शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है
शब कि वो मजलिस-फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था
शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था
सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का
सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है
सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है
सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमा
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
रौंदी हुई है कौकबा-ए-शहरयार की
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
रहम कर ज़ालिम कि क्या बूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
रहा गर कोई ता-क़यामत सलामत
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
पीनस में गुज़रते हैं जो कूचे से वह मेरे
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है