Coupletss of Mirza Ghalib

Coupletss of Mirza Ghalib
नामग़ालिब
अंग्रेज़ी नामMirza Ghalib
जन्म की तारीख1797
मौत की तिथि1869
जन्म स्थानDelhi

ज़ोफ़ से गिर्या मुबद्दल ब-दम-ए-सर्द हुआ

ज़ोफ़ में तअना-ए-अग़्यार का शिकवा क्या है

ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'

ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना

ज़िद की है और बात मगर ख़ू बुरी नहीं

ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद

ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना

ज़बाँ पे बार-ए-ख़ुदाया ये किस का नाम आया

यूसुफ़ उस को कहो और कुछ न कहे ख़ैर हुई

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब'

ये लाश-ए-बे-कफ़न 'असद'-ए-ख़स्ता-जाँ की है

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं

ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

या-रब ज़माना मुझ को मिटाता है किस लिए

या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात

यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं

या रब हमें तो ख़्वाब में भी मत दिखाइयो

वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़

वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है

विदाअ ओ वस्ल में हैं लज़्ज़तें जुदागाना

वाइज़ न तुम पियो न किसी को पिला सको

वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ

वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है

वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा

वादा आने का वफ़ा कीजे ये क्या अंदाज़ है

उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ

उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है 'ग़ालिब'

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