Sad Poetry of Mirza Ghalib

Sad Poetry of Mirza Ghalib
नामग़ालिब
अंग्रेज़ी नामMirza Ghalib
जन्म की तारीख1797
मौत की तिथि1869
जन्म स्थानDelhi

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं

तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है

ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर

शोरीदगी के हाथ से है सर वबाल-ए-दोश

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज

रखियो 'ग़ालिब' मुझे इस तल्ख़-नवाई में मुआफ़

क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं

फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया

नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं

ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में

मिसाल ये मिरी कोशिश की है कि मुर्ग़-ए-असीर

मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था

मौत का एक दिन मुअय्यन है

मरते हैं आरज़ू में मरने की

मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'

मैं भी रुक रुक के न मरता जो ज़बाँ के बदले

लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़

लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और

क्या ख़ूब तुम ने ग़ैर को बोसा नहीं दिया

कोई वीरानी सी वीरानी है

काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ

कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है

कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से

जब मय-कदा छुटा तो फिर अब क्या जगह की क़ैद

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

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