Sad Poetry of Mirza Ghalib (page 6)
नाम | ग़ालिब |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Mirza Ghalib |
जन्म की तारीख | 1797 |
मौत की तिथि | 1869 |
जन्म स्थान | Delhi |
हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़-ए-यक-अफ़्ग़ँ है
हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है
हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या
हासिल से हाथ धो बैठ ऐ आरज़ू-ख़िरामी
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में
है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा
है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और
गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज
गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है
गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
घर में था क्या कि तिरा ग़म उसे ग़ारत करता
घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता
ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की
ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
गर्म-ए-फ़रियाद रखा शक्ल-ए-निहाली ने मुझे
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा
गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है
गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो
फ़रियाद की कोई लय नहीं है