काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ
सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3870) Peoples Rate This
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा
मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
पिन्हाँ था दाम-ए-सख़्त क़रीब आशियान के
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना
माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो