कौन है जो नहीं है हाजत-मंद
किस की हाजत रवा करे कोई
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जल्वे का तेरे वो आलम है कि गर कीजे ख़याल
ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करे
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे
बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
है बज़्म-ए-बुताँ में सुख़न आज़ुर्दा-लबों से