वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
है ख़याल-ए-हुस्न में हुस्न-ए-अमल का सा ख़याल
ताअत में ता रहे न मय-ओ-अँगबीं की लाग
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उमीदी क्या क़यामत है
हाँ ऐ फ़लक-ए-पीर जवाँ था अभी आरिफ़
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं