Coupletss of Mirza Ghalib (page 6)

Coupletss of Mirza Ghalib (page 6)
नामग़ालिब
अंग्रेज़ी नामMirza Ghalib
जन्म की तारीख1797
मौत की तिथि1869
जन्म स्थानDelhi

कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं

कोई वीरानी सी वीरानी है

कोई उम्मीद बर नहीं आती

कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को

कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं

की उस ने गर्म सीना-ए-अहल-ए-हवस में जा

की मिरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा

खुलता किसी पे क्यूँ मिरे दिल का मोआमला

खुलेगा किस तरह मज़मूँ मिरे मक्तूब का या रब

ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है

ख़ुदा शरमाए हाथों को कि रखते हैं कशाकश में

ख़ूब था पहले से होते जो हम अपने बद-ख़्वाह

ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो

काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ

कौन है जो नहीं है हाजत-मंद

करने गए थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला

करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना

काँटों की ज़बाँ सूख गई प्यास से या रब

कम नहीं जल्वागरी में, तिरे कूचे से बहिश्त

कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तू ने हम-नशीं

कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है

कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना

कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़

कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है

काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से

काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'

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