कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने
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'असद' हम वो जुनूँ-जौलाँ गदा-ए-बे-सर-ओ-पा हैं
क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़
है वस्ल हिज्र आलम-ए-तमकीन-ओ-ज़ब्त में
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
हुजूम-ए-ग़म से याँ तक सर-निगूनी मुझ को हासिल है
हर बुल-हवस ने हुस्न-परस्ती शिआ'र की
न बंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ के मज़मूँ 'ग़ालिब'
नज़र लगे न कहीं उन के दस्त-ओ-बाज़ू को
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
चाहिए अच्छों को जितना चाहिए