हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
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दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
फिर इस अंदाज़ से बहार आई
हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बअ'द
शेर 'ग़ालिब' का नहीं वही ये तस्लीम मगर
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की
जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा
क़त्अ कीजे न तअ'ल्लुक़ हम से
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़