समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है क्या कहिए
Rahat Indori
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1179) Peoples Rate This
होगा कोई ऐसा भी कि 'ग़ालिब' को न जाने
जिस जा नसीम शाना-कश-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार है
फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
जल्वे का तेरे वो आलम है कि गर कीजे ख़याल
बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी