'ग़ालिब' तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को
हैं आज क्यूँ ज़लील कि कल तक न थी पसंद
कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में
ज़माना सख़्त कम-आज़ार है ब-जान-ए-असद
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
चाहते हैं ख़ूब-रूयों को 'असद'
सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
जाते हुए कहते हो क़यामत को मिलेंगे