सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं
अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है
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बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए
दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ
मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें
ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
खुलता किसी पे क्यूँ मिरे दिल का मोआमला
तिरे जवाहिर-ए-तरफ़-ए-कुलह को क्या देखें
काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम