तिरे जवाहिर-ए-तरफ़-ए-कुलह को क्या देखें
हम औज-ए-ताला-ए-लाला-ओ-गुहर को देखते हैं
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1314) Peoples Rate This
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब'
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना
उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ
ने तीर कमाँ में है न सय्याद कमीं में
आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद'
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
गर न अंदोह-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त बयाँ हो जाएगा