इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने
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किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते
है आदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं
है काएनात को हरकत तेरे ज़ौक़ से
ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता