कोई उम्मीद बर नहीं आती
कल के लिए कर आज न ख़िस्सत शराब में
नाकामी-ए-निगाह है बर्क़-ए-नज़ारा-सोज़
चाहते हैं ख़ूब-रूयों को 'असद'
गुलशन को तिरी सोहबत अज़-बस-कि ख़ुश आई है
वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथ
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह
क्यूँ न हो चश्म-ए-बुताँ महव-ए-तग़ाफ़ुल क्यूँ न हो
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
कम नहीं जल्वागरी में, तिरे कूचे से बहिश्त
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह