धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
रखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव
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मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार
लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़
मय से ग़रज़ नशात है किस रू-सियाह को
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
हर-चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ
बस कि फ़ा'आलुम्मा-युरीद है आज
ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना
नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब