बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
सो रहता है ब-अंदाज़-ए-चकीदन सर-निगूँ वो भी
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जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या
कम नहीं जल्वागरी में, तिरे कूचे से बहिश्त
गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
आ ही जाता वो राह पर 'ग़ालिब'
मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे
वादा आने का वफ़ा कीजे ये क्या अंदाज़ है
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है
शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था
जो ये कहे कि रेख़्ता क्यूँके हो रश्क-ए-फ़ारसी