अर्ज़-ए-नाज़-ए-शोख़ी-ए-दंदाँ बराए-ख़ंदा है
न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक
शेर 'ग़ालिब' का नहीं वही ये तस्लीम मगर
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
मैं उन्हें छेड़ूँ और वो कुछ न कहें
हर इक मकान को है मकीं से शरफ़ 'असद'
बे-नियाज़ी हद से गुज़री बंदा-परवर कब तलक
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग