ज़ाहिद का दिल न ख़ातिर-ए-मय-ख़्वार तोड़िए
सौ बार तो ये कीजिए सौ बार तोड़िए
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लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
सुनता हूँ न कानों से न कुछ मुँह से हूँ बकता
हुए आज बूढ़े जवानी में क्या थे
न पाया खोज बरसों नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ ढूँढे
शौक़-ए-ख़राश-ए-ख़ार मिरे दिल में रह गया
मैं न समझा बुलबुल बे-बाल-ओ-पर ने क्या कहा
माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले
मुज़्दा ये सबा उस बुत-ए-बे-बाक को पहुँचा
देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है
दिल में इक इज़्तिराब बाक़ी है