माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले
हम खींच वहीं क़श्क़ा ज़ुन्नार पहन निकले
Parveen Shakir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(594) Peoples Rate This
बे-वज्ह नहीं गर्द परेशाँ पस-ए-महमिल
सद-चाक किया पैरहन-ए-गुल को सबा ने
ज़ाहिद का दिल न ख़ातिर-ए-मय-ख़्वार तोड़िए
न पाया वक़्त ऐ ज़ाहिद कोई मैं ने इबादत का
न काफ़िर से ख़ल्वत न ज़ाहिद से उल्फ़त
हरगिज़ न मिरे महरम-ए-हमराज़ हुए तुम
उस परी-रू ने न मुझ से है निबाही क्या करूँ
न पाया खोज बरसों नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ ढूँढे
हमारी देखियो ग़फ़लत न समझे वाए नादानी
शौक़-ए-ख़राश-ए-ख़ार मिरे दिल में रह गया
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
दिल में इक इज़्तिराब बाक़ी है